बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 इतिहास बीए सेमेस्टर-3 इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 इतिहास
प्रश्न- अस्पृश्यता से आप क्या समझते हैं? इसकी समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर -
अस्पृश्यता
अस्पृश्यता का शाब्दिक अर्थ है "जो छूने के योग्य नहीं है। यह एक ऐसी धारणा है, जिसके अनुसार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को छूने देखने और छाया पड़ने मात्र से अपवित्र हो जाता है। सवर्ण हिन्दुओं को अपवित्र होने से बचाने के लिए अस्पृश्य लोगों के रहने के लिए अलग से व्यवस्था की गयी, उन पर अनेक निर्योग्यताएँ लाद दी गयीं और उनके सम्पर्क से बचाने के कई उपाय किये गये। अस्पृश्यों के अन्तर्गत वे जातीय समूह आते हैं जिनके छूने से अन्य व्यक्ति अपवित्र हो जायें और जिन्हें पुनः पवित्र होने के लिए कुछ विशेष संस्कार करना पड़े। इस सम्बन्ध में डा. के. एन. शर्मा ने लिखा है "अस्पृश्य जातियाँ वे हैं जिनके स्पर्श से एक व्यक्ति अपवित्र हो जाय और उसे पवित्र होने के लिए कुछ कृत्य करने पड़े। आर. एन. सक्सेना ने इस बारे में लिखा है कि यदि ऐसे लोगों को अस्पृश्य माना जाय जिनके छूने से हिन्दुओं को शुद्धि करनी पड़े तो ऐसी स्थिति में हट्टन के एक उदाहरण के अनुसार ब्राह्मणों को अस्पृश्य मानना पड़ेगा क्योंकि दक्षिण भारत में होलिया जाति के लोग ब्राह्मण को अपने गाँव के बीच से नहीं जाने देते हैं और यदि वह चला जाता है तो वे लोग गाँव की शुद्धि करते हैं। स्पष्ट है कि अस्पृश्यता के निर्धारण में छूने मात्र से अपवित्र होने की बात पर्याप्त नहीं है।
हट्टन ने उपरोक्त कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए कुछ ऐसी निर्योग्यताओं का उल्लेख किया है जिनके आधार पर अस्पृश्य जातियों के निर्धारण का प्रयत्न किया गया है। आपने उन लोगों को अस्पृश्य माना है जो-
(1) उच्च स्थिति के ब्राह्मणों की सेवा प्राप्त करने के अयोग्य हों।
(2) सवर्ण हिन्दुओं की सेवा करने वाले नाइयों, कहारों तथा दर्जियों की सेवा पाने के अयोग्य हों।
(3) हिन्दु मन्दिरों में प्रवेश प्राप्त करने के अयोग्य हों।
(4) सार्वजनिक सुविधाओं ( पाठशाला, सड़क तथा कुँआ ) से उपयोग में लाने के अयोग्य हैं और
(5) घृणित पेशे से पृथक् होने के अयोग्य हों।
सारे देश में अस्पृश्यों के प्रति एक सा व्यवहार नहीं पाया जाता और न ही देश के विभिन्न भागों में अस्पृश्यों के सामाजिक स्तर में समानता पायी जाती है। अतः हट्टन द्वारा दिये गये उपर्युक्त आधार भी अन्तिम नहीं है। डा. डी. एन. मजूमदार के अनुसार, "अस्पृश्य जातियाँ वे हैं जो विभिन्न सामाजिक एवं राजनैतिक निर्योग्यताओं से पीड़ित हैं, जिनमें बहुत सी निर्योग्यताएँ उच्च जातियों द्वारा परम्परागत रूप से निर्धारित और सामाजिक रूप से लागू की गयी हैं। अतः स्पष्ट है कि अस्पृश्यता से सम्बन्धित कई निर्योग्यताएँ या समस्याएँ हैं -
अस्पृश्यता की समस्याएँ - अस्पृश्यता की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
(1) सामाजिक समस्याएँ - अस्पृश्य लोगों को सदियों से विभिन्न प्रकार की सामाजिक अशाक्तताओं एवं शोषण का सामना करना पड़ता आ रहा है, जिनमें निम्नलिखित का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है.
(i) अति निम्न सामाजिक प्रस्थिति - अस्पृश्यता की श्रेणी में आने वाली अधिकांश जातियाँ जाति- संरचना में 'शूद्रों' की श्रेणी में रहीं हैं। इस कारण, जाति के स्तरण में उनका स्थान सब से नीचा रहा है। जाति-संरचना में उनकी निम्न प्रस्थिति को स्थायी एवं अपरिवर्तनशील समझा जाता है। यह प्रस्थिति जन्म पर आधारित होती है, जिसमें सिद्धांततः प्रयासों द्वारा भी सुधार नहीं लाया जा सकता। ऊँची जातियों के लोग अश्पृश्य जातियों को प्रारम्भ से ही हेय दृष्टि से देखते आए हैं।
(ii) सामाजिक शोषण के शिकार - समाज में बहुत ही नीचा स्थान होने के कारण, अस्पृश्य जातियों को विभिन्न प्रकार के सामाजिक शोषण और अत्याचारों को सहना पड़ता है। उन पर ऊँची जातियों के लोगों के साथ उठने-बैठने, खाने-पीने, रहने, बातचीत करने, उत्सवों में भाग लेने, बराबरी के स्तर पर आचरण करने आदि पर कड़े प्रतिबन्ध रहे हैं। उनके लिए ऊँची जातियों के समक्ष सम्मान दिखाना अनिवार्य था। उन्हें अच्छे कपड़े पहनने, अच्छे मकानों में रहने, अच्छा भोजन खाने आदि के भी अधिकार नहीं थे। अश्पृश्य जाति के लोगों के लिए निवास स्थान भी ऊँची जातियों के घरों से दूर बस्तियों के किनारे पर ही रहते थे।
(2) आर्थिक समस्याएँ - अश्पृश्य लोगों को कई प्रकार की आर्थिक अशक्तताओं का सामना करना पड़ा है। इन अशक्तताओं में निम्नलिखित मुख्य हैं -
(i) व्यवसाय पर प्रतिबंध अश्पृश्य लोगों को कोई भी व्यवसाय करने पर प्रतिबंध था। उन्हें ऊँची जातियों के आदेशानुसार कार्य करने पड़ते थे। उन्हें ऊँची जातियों द्वारा किए जाने वाले कार्य करने का अधिकार नहीं था। इस नियम का उल्लंघन करने पर उन्हें दंड़ित भी किया जाता था। अधिकांशतः उन्हें गंदे और कठिन शारीरिक श्रम वाले कार्यों पर ही लगाया जाता रहा है।
(ii) संपत्ति के अधिकार से वंचित- कई अश्पृश्य जातियों को परंपरा से संपत्ति का अधिकार प्राप्त नहीं था। उनकी अपनी जमीन नहीं होती थी और उनके घर भी दूसरों की जमीन पर बने होते थे। संपत्ति के नाम पर उनकी झोपड़ी तथा कुछ घरेलू सामान ही होते थे। यद्यपि कानून के अन्तर्गत उन्हें अन्य नागरिकों की तरह संपत्ति का अधिकार है, लेकिन व्यवहार में उनमें अधिकांश की संपत्ति नाममात्र की है।
(iii) निम्न मजदूरी - अश्पृश्य लोगों को गंदे और कठिन कार्यों पर लगाया जाता था, तो दूसरी ओर उन्हें इन कार्यों के लिए मजदूरी भी बहुत कम दी जाती थी। अति निम्न सामाजिक प्रस्थिति एवं सामाजिक शोषण के शिकार होने के कारण उनकी निम्न मजदूरी को उचित ठहराया जाता था। धनोपार्जन के अन्य स्रोतों जैसे वाणिज्य व्यापार, अच्छे व्यवसाय, नौकरी आदि पर प्रतिबंध लगे होने के कारण वे अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में असमर्थ थे।
(3) धार्मिक समस्याएँ - अश्पृश्य जातियों के लोग हिन्दु-समाज के ही अंग हैं, फिर भी उन्हें तरह-तरह की धार्मिक अशक्तताओं का सामना करना पड़ा है। वे मन्दिरों में जाकर पूजा नहीं कर सकते थे। उन्हें धार्मिक प्रवचन सुनने, पूजा पाठ करने, जनेऊ धारण करने, तपस्या एवं यज्ञ करने, धार्मिक पुस्तक पढ़ने आदि की अनुमति नहीं थी। ब्राह्मण उनकी पुरोहिती करने से भी इनकार करते आए हैं। अस्पृश्य होने के कारण वे ऊँची जातियों के धार्मिक कृत्यों में भी भाग नहीं ले सकते थे। इन धार्मिक अशक्तताओं के कारण अश्पृश्य जातियों के कई लोगों ने अन्य धर्मों की शरण ली।
अस्पृश्यता की वर्तमान स्थिति पिछले कुछ दशकों में अपवित्रता - पवित्रता सम्बन्धी कठोरताओं में कमी आयी है। आज लोग अस्पृश्य समझे जाने वाले लोगों के साथ उठते-बैठते हैं, साथ-साथ काम करते हैं, एक दूसरे के यहाँ आते-जाते भी हैं। अब लोगों का अस्पृश्यों के प्रति वैसा व्यवहार नहीं है जैसा पचास-साठ वर्ष पूर्व था।
वर्तमान में अस्पृश्यों की समस्या प्रमुखतः सामाजिक और आर्थिक है, न कि धार्मिक और राजनीतिक। इतने लम्बे समय से सब प्रकार के अधिकारों से वंचित, निरक्षर तथा चेतना शून्य होने के कारण इनकी स्थिति में सुधार होने में कुछ समय लगेगा। इनके प्रति लोगों की मनोवृत्ति धीरे-धीरे बदलेगी और कलान्तर में ये सामाजिक जीवन की मुख्य धारा में प्रवाहित हो सकेंगे। अस्पृश्यों की निर्योग्यताएँ नगरों में समाप्त सी होती जा रही हैं, परन्तु ग्रामों में आज भी दिखलायी पड़ती है। इसका प्रमुख कारण यही है कि ग्रामों में सामाजिक परिवर्तन की गति धीमी है, रूढ़िवादिता का अभी भी वहाँ बोलबाला है।
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- प्रश्न- यूरोपीय फ्रांसीसी कंपनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- पुर्तगालियों के असफलता के कारण बताइये।
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- प्रश्न- बक्सर के युद्ध के कारण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारत में लार्ड क्लाइव के कार्यों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- लार्ड वेलेजली के आगमन के समय भारत की राजनीतिक स्थितियाँ क्या थीं?
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- प्रश्न- वेलेजली की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- ब्रिटिश कम्पनी की भारत में आर्थिक एवं शैक्षिक नीति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- लॉर्ड विलियम बेंटिक के प्रशासनिक एवं सामाजिक सुधारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लार्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा तथा अन्य क्रूर प्रथाओं को बन्द करने की क्या नीति अपनाई? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विलियम बैंटिक के समाचार पत्रों के प्रति उदार नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विलियम बैंटिक के द्वारा नैतिक तथा बौद्धिक विकास के लिए किये गये शैक्षणिक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बैंटिक के वित्तीय तथा न्यायिक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड विलियम बैंटिक के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ब्रिटिश भारत में स्त्रियों की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर ब्रिटिश शासन के सामाजिक प्रभाव का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अंग्रेजों द्वारा पारित सामाजिक कानून पर निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- 1833 के चार्टर एक्ट पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी की 'हड़पनीति से आप क्या समझते हैं? इस नीति से ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कैसे प्रोत्साहन मिला?
- प्रश्न- - डलहौजी के द्वारा किए गए रचनात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी द्वारा विद्युत तार एवं डाक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी द्वारा रेलवे विभाग में क्या सुधार किये गये?
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी के प्रशासनिक एवं सैनिक सुधारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत के आधुनिकीकरण में लार्ड डलहौजी का योगदान क्या था?
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी को शिक्षा सम्बन्धी सुधारों में कहां तक सफलता प्राप्त हुई? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 1853 के चार्टर एक्ट पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह का परिचय देते हुए अफगानों एवं अंग्रेजों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अंग्रेजों और सिक्खों के प्रथम युद्ध के कारण व प्रसिद्ध घटनाओं और परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- रणजीत सिंह का डोंगरों और नेपालियों से सम्बन्ध को संक्षिप्त में समझाइये |
- प्रश्न- रणजीत सिंह के प्रशासन के अंतर्गत भूमिकर एवं न्याय प्रशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह ने सैनिक प्रशासन में कहाँ तक सफलता प्राप्त की? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सिक्खों और अंग्रेजों के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- हैदराबाद के एक राज्य के रूप में उदय की परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- हैदराबाद अकस्मात ही विघटनकारी शक्तियों का शिकार हो गया था, विवेचनात्मक उत्तर दीजिये।
- प्रश्न- 1724-1802 तक की हैदराबाद की राजनीतिक गतिविधियों का अवलोकन कीजिये।
- प्रश्न- टीपू की शासन प्रणाली का सविस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैसूर राज्य का विस्तृत अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- एंग्लो-मैसूर युद्धों का समीक्षात्मक अध्ययन कीजिये।
- प्रश्न- टीपू सुल्तान और मैसूर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मैसूर व इतिहास लेखन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- 18वीं सदी में, मैसूर की स्थिति से संक्षिप्त रूप से परिचित कराइये।
- प्रश्न- 1399 ईस्वी से अठारहवीं सदी के मध्य मैसूर राज्य की स्थिति से अवगत कराइये।
- प्रश्न- स्थायी बंदोबस्त से क्या आशय है? लार्ड कार्नवालिस द्वारा स्थायी बंदोबस्त लागू करने के क्या कारण थे?
- प्रश्न- ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर भिन्न-भिन्न कर प्रणाली लगाने का क्या उद्देश्य रहा?
- प्रश्न- स्थायी बंदोबस्त ने किस प्रकार जमींदारी व्यवस्था को जन्म दिया?
- प्रश्न- भारतीय पुनर्जागरण के कारणों, परिणामों एवं विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 19वीं शताब्दी के प्रमुख सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों को बताइये।
- प्रश्न- क्या राजा राममोहन राय को 'आधुनिक भारत का पिता' कहना उचित है?
- प्रश्न- भारतीय सामाजिक तथा धार्मिक पुनर्जागरण में आर्य समाज की देनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धान्तों व कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के सामाजिक-धार्मिक पुनरुत्थान में स्वामी विवेकानन्द के योगदान का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- 19-20वीं सदी के जातिवाद विरोधी आंदोलनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अहिंसा और सत्याग्रह पर गाँधी जी के विचारों का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- रामकृष्ण परमहंस पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अछूतोद्धार हेतु भीमराव अम्बेडकर के किए गये कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- एक शासक के रूप में अशोक के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- अस्पृश्यता से आप क्या समझते हैं? इसकी समस्याओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय पुनर्जागरण का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- ब्रह्म समाज से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- प्रार्थना समाज ने समाज सुधार की दिशा में क्या कार्य किए?
- प्रश्न- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के समाज सुधार में किए गए कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आर्य समाज की मुख्य शिक्षाएँ व समाज सुधार में किए गए योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- थियोसोफिकल सोसाइटी पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के सामाजिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में 19वीं सदी में हुए विभिन्न सुधारवादी आन्दोलनों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- अश्पृश्यता निवारण के लिए महात्मा गाँधी की सेवाओं का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- 20वीं सदी में हुए प्रमुख सामाजिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजवाद पर नेहरू के विचारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में जाति प्रथा पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर पड़े दो पाश्चात्य प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नाविक विद्रोह 1946 का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- होमरूल से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- साम्प्रदायिक निर्णय 1932 ई. की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- दाण्डी यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- श्री अरविन्द घोष के जीवन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रामकृष्ण मिशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चैतन्य महाप्रभु पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'पुरुषार्थ आश्रमों के मनोनैतिक आधार हैं। टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- उन्नीसवीं सदीं में सामाजिक जागरण के क्या कारण थे?